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Sunday 22 April 2012

दहेज़ विरोधी कानून (498A) का दुरूपयोग “कानूनन-आतंकवाद” के समान हैं

दहेज़ विरोधी कानून (498A) का दुरूपयोग “कानूनन-आतंकवाद” के समान हैं : माननीय सुप्रीम कोर्ट
यह मुद्दा (दहेज़ विरोधी कानून-498A) बहुत ही प्रासंगिक है, कुछ विचारनीय प्रश्न और बिंदु इस प्रकार है :
1.    इस दहेज़ विरोधी क़ानून (498A) के दुरूपयोग ने शादी को तोड़ना बहुत आसान बना दिया है और शादी निभाना बहुत कठिन…..
2.     टूटती शादीओ का असली बोझ उठाते है , मासूम बच्चे , उनके प्रति भी कुछ ज़िम्मेदारी है समाज की और क़ानून विशेषज्ञों की ? ईलैक्ट्रानिक मीडिया / चैनल को बच्चो का प्रतिनिधित्व  भी करना चाहिए.
3.     माननीय कोर्ट को मानवीय सोच के साथ यह भी देखना चाहिये कि इस प्रकार के कानून मे सिर्फ बहू (विवाहिता/वादी) ही महिला नही है अपितु सास (माँ), ननद (बहन), व भाभी भी महिला है, जिनको कि बहू      (विवाहिता/वादी) सबसे पहले अभियुक्त बनाती है सिर्फ इस सोच के साथ कि बाद मे समझौते के तहत  अधिक से अधिक एकमुश्त पैसा प्राप्त कर सके ।
4.      दहेज के लिए दहेज प्रतिरोधक क़ानून अलग से है, यह क़ानून क्रूरता के लिए है और इसका इस्तेमाल  खुलेआम दहेज से जोड़कर किया जा रहा है, जो की अपने आप मैं सबूत है, इसके मिसयूज़ का ?
5.      यह क़ानून एक गुनहगार को सज़ा दिलाने के लिए लाखो बेगुनाह को शिकार बना रहा है . इसे बंद कर देना चाहिए. असली सशक्तिकरण शिक्षा से आता है जो की अर्बन महिलाओ में आ चुका है.
6.      इस क़ानून का सिर्फ़ और सिर्फ़ मिसयूज़ है, क्योंकि असली विक्टिम , अगर कोई है तो , वो दहेज देने के समय शादी से माना कर सकती है, या फिर एक क्रूर पार्ट्नर से संबंद तोड़ सकती , कभी भी.
7.       माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी इस बात पर आश्चर्य जताया है कि 498A के अधिकाशं केसो में समझौता कैसे हो जाता है (?) जबकि यह धारा (498A) गैर-समझौतावादी है? किस प्रकार एक वादी (पत्नी ??) 498A का केस करके, एक समझौते के तहत एकमुश्त पैसा प्राप्त कर लेती है और फिर उसी माननीय कोर्ट के समक्ष अपने पूर्व के आरोपो को वापिस ले लेती है ???
8.       शोयिब मलिक पर 498A लगाया था, परंतु क्या मुद्दा दहेज का था ? हर कोई जानता है, की मुद्दा पैसे का था और पैसा देते ही खत्म हो गया| मेरठ का नितीश-आडति प्रकरण भी अभी ज्यादा पुराना नही हुआ है कि किस प्रकार से लङ्की व उसके अभिभावको ने इस दहेज़ विरोधी क़ानून (498A) का दुरूपयोग कर रहे है।
9.       यह क़ानून लीगल टेररिज़म है, जो की देश की नवयुवक पीढ़ी की उर्जा ओर और समय को खा रहा है, अगर देश का युवा ऐसे ही अदालत मे समय लगता रहा अपने को निर्दोष साबित करने के जद्दोजहद में तो कैसे हम मुकाबला करेंगे  चीन, अमेरिका, जापान से ?
10.      इसी कानून (498A) मे एसे प्रावधान भी होने चाहिये जिससे कि केस को लम्बित रखने और केस के झूठे सिद्ध होने पर वादी को सज़ा मिल सके, जिससे दहेज़ विरोधी क़ानून (498A) का दुरूपयोग रोका जा सके ।
धनयवाद,                 
                                                                                                                      कमल हिन्दुस्तानी 

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