Om Durgaye Nmh

Om Durgaye  Nmh
Om Durgaye Nmh

Saturday 21 April 2012

YEH KAISA INSAAF

मुझे मेरी बीवी से बचाओ     PDF E-mail

Written by Navbharat Times   
Monday, 03 August 2009 14:16
ऐसा नहीं है कि दहेज के लिए लड़कियों को सताने के मामले कम हो गए हैं अब भी हर रोज कहीं कहीं से दहेज उत्पीड़न की खबरें आती रहती हैं। दहेज हत्याओं का सिलसिला भी जारी है। हालांकि दहेज प्रताड़ना और घरेलू हिंसा का दूसरा पहलू भी कम चिंताजनक नहीं है। यह है दहेज कानून की आड़ में लड़के और उसके परिवारवालों को तंग करना दहेज के झूठे मामले दर्ज कराना। महिलाओं की सुरक्षा के लिए बने कानूनों का धड़ल्ले से गलत इस्तेमाल हो रहा है। इसी का नतीजा है कि महिला मुक्ति की तर्ज पर पुरुष भी अपने हकों के लिए एकजुट होने लगे हैं। मंडे स्कैन में इसी के अलग - अलग पहलुओं को टटोल रही है पूनम पाण्डे की स्पेशल रिपोर्ट -
मजाक के लिए तराशे गए जुमले ' मुझे मेरी बीवी से बचाओ ' अब हकीकत बन चुके हैं। बीवियों के सताए पति त्रस्त होकर ऐसी गुहार लगा रहे हैं। ' दहेज और घरेलू हिंसा कानून की आड़ में अगर बीवी सताए तो हमें बताएं ' लिखे पोस्टर मेट्रो सिटीज में आम हो गए हैं। कुछ लोग पहचान छुपाकर अत्याचार का शिकार पुरुषों की मदद कर रहे हैं , तो कुछ सड़कों से लेकर कोर्ट तक और मीडिया से लेकर इंटरनेट तक के जरिए अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं।
2005 में तीन ऐसे ही लोगों से शुरू हुए ग्रुप के साथ अब दुनिया भर में एक लाख से ज्यादा ऐक्टिव मेंबर जुड़ चुके हैं। पढ़े लिखे , मैनिजमंट , आईटी , टेलिकॉम , बैंकिंग , सर्विस इंडस्ट्री , ब्यूरोक्रेट्स सरीखे सभी फील्ड के प्रफेशनल्स ने मिलकर ' सेव फैमिली फाउंडेशन ' बनाई है। इनका दावा है कि दिल्ली - एनसीआर में 5 लाख ऐसे लोग हैं , जो कथित तौर पर पत्नियों के पक्ष में बने एकतरफा कानून (498 और घरेलू हिंसा कानून ) से पीड़ित हैं या इसे झेल चुके हैं।
आजादी की आस
अत्याचार के शिकार पति इस बार स्वतंत्रता दिवस पारंपरिक तरीके से नहीं मनाने वाले हैं। देश भर से करीब 30 हजार लोगों के प्रतिनिधि के तौर पर अलग - अलग शहरों से सैकड़ों पति 15 अगस्त को शिमला में इकट्ठे हो रहे हैं। ये अत्याचार से आजादी के लिए रणनीति तैयार करेंगे। इनका मानना है कि ये स्त्री केंद्रित समाज में लगातार जकड़ते जा रहे हैं। इन्होंने ऐलान किया है कि ये तब तक स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाएंगे , जब तक इनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं। इनकी मांगे हैं - महिला और बाल कल्याण मंत्रालय की तर्ज पर पुरुष कल्याण मंत्रालय बनाया जाए , घरेलू हिंसा एक्ट में बदलाव किया जाए और तलाकशुदा जोड़े के बच्चों की जॉइंट कस्टडी दी जाए।
मर्द को भी होता है दर्द
पुरुष घरेलू हिंसा के शिकार होते हैं या नहीं , इसे लेकर अब तक कोई सरकारी स्टडी नहीं हुई है , लेकिन ' सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन ' और ' माई नेशन ' की एक स्टडी के मुताबिक 98 फीसदी भारतीय पति तीन साल की रिलेशनशिप में कम से कम एक बार इसका सामना कर चुके हैं। इस ऑनलाइन स्टडी में शामिल 25.21 फीसदी शारीरिक , 22.18 फीसदी मौखिक और भावनात्मक , 32.79 फीसदी आर्थिक हिंसा के शिकार बने जबकि 17.82 फीसदी पतियों को ' सेक्सुअल अब्यूज ' झेलना पड़ा।
स्टडी रिपोर्ट में कहा गया कि जब पुरुषों ने अपनी समस्या , पत्नी द्वारा अपने और परिवार वालों के शोषण के बारे में बताना चाहा तो कोई सुनने को ही तैयार नहीं हुआ। उल्टा सब उन पर हंसे। कई ने स्वीकारा कि उन्हें किसी को यह बताने में शर्म आती है कि उनकी पत्नी उन्हें पीटती है। स्टडी में विभिन्न सामाजिक और आर्थिक वर्ग के लोगों को शामिल किया गया था। इसमें ज्यादातर मिडल क्लास और अपर मिडल क्लास के थे। ऐसे में सवाल उठता है कि जब पुरुष भी घरेलू हिंसा का शिकार बनता है , तो कानून में उसे संरक्षण क्यों नहीं मिलता। विकसित देशों की तरह घरेलू हिंसा ऐक्ट महिला और पुरुष के लिए बराबर क्यों नहीं है ?
498 के बारे में कुछ फैक्ट
  • गिरफ्तार किए गए लोगों में से 94 फीसदी लोग दोषी नहीं पाए गए। ( प्री और पोस्ट ट्रायल )
  • ट्रायल पूरा होने के बाद 85 फीसदी दोषी नहीं पाए गए , लेकिन इन्हें भी बिना किसी जांच के गिरफ्तार किया गया।
  • यूपी के खीरी जिले में ही सात सालों में 498 के तहत 1000 नाबालिग लड़कियां बिना किसी जांच के गिरफ्तार की गईं।
  • क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में रिफॉर्म्स को लेकर बनी जस्टिस मलिमथ कमिटी ने भी 2005 में अपनी रिपोर्ट में 498 को जमानती और कंपाउंडेबल बनाने की सिफारिश की थी।
कानून , मिसयूज और सुझाव
आईपीसी 498
क्या है कानून - अगर किसी महिला को उसका पति या पति के रिश्तेदार दहेज के लिए प्रताडि़त करते हैं तो इसके तहत उन्हें तीन साल की सजा हो सकती है। इसके दायरे में दूरदराज के रिश्तेदार जैसे शादीशुदा बहन का पति ( चाहे वह वहां रहता हो या नहीं ) भी शामिल हो सकता हैं। यह संज्ञेय अपराध है। मतलब बिना कोर्ट के आदेश के पुलिस उनको गिरफ्तार कर सकती है जिनका नाम एफआईआर में है। यह गैर - जमानती है। कोर्ट से ही जमानत ली जा सकती है और कोर्ट पर निर्भर है कि कितने दिन में जमानत दे।
कैसे होता है मिसयूज - पुलिस बिना किसी जांच और सबूत के एफआईआर में नामजद लोगों को गिरफ्तार करती है। ससुराल पक्ष के लोगों को परेशान करने की नीयत से सबका नाम एफआईआर में डलवाया जा रहा है। जिन्होंने एफआईआर करवाई है , वह जमानत के लिए विरोध करने के नाम पर मनचाही रकम वसूल रहे हैं। उन राज्यों में जहां लॉ ऐंड ऑर्डर की हालात ज्यादा खस्ता है , इसका सबसे ज्यादा मिसयूज होता है। यूपी में तो स्टेट अमेंडमंट हैं कि अंतरिम जमानत नहीं मिल सकती।
कैसे रुके मिसयूज - 498 में कोई भी शिकायत आए तो गिरफ्तारी तब तक ना हो जब तक कोई सबूत या साक्ष्य उपलब्ध हों। एफआईआर में जो आरोप हैं ( जैसे - लाखों रुपये शादी में खर्च किए ) उसे साबित करने के लिए दो विटनस या डॉक्युमंट एफआईआर करते वक्त ही मांगे जाएं। अभी सिर्फ आरोप लगाना काफी माना जाता है। हालांकि उत्तराखंड जैसे कुछ स्टेट में प्रशासनिक स्तर पर बिना किसी ऑर्डर या नोटिस के इसे फॉलो किया जा रहा है। एफआईआर करने वाले को एफआईआर में शामिल लोगों से कोई मोटी रकम ना दिलाई जाए। इससे लालच बढ़ता है और मिसयूज की संभावना भी। दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस एस . एन . ढींगरा के एक जजमंट पर दिल्ली पुलिस कमिश्नर ने गाइडलाइंस जारी की है कि एफआईआर में लाखों रुपये दहेज में देने के आरोप की जांच करें। अरेस्ट करने के लिए सीनियर पुलिस ऑफिसर की रिकमंडेशन लें और एफआईआर भी करें तो सीनियर पुलिस ऑफिसर की रिकमंडेशन लें।
डोमेस्टिक वॉयलंस ऐक्ट 2005
क्या है कानून - इसमें महिला अपने साथ हुए फिजिकल , इमोशनल , इकॉनमिक , सेक्सुअल वॉयलंस की शिकायत कर सकती है। शिकायत करने वाली महिला कोर्ट से संरक्षण , रहने के अधिकार , बच्चे की कस्टडी और मेंटेनेंस को लेकर ऑर्डर मांग सकती है। यह संज्ञेय या असंज्ञेय के तहत नहीं आता। कोई भी महिला पुलिस से , कोर्ट से या प्रोटेक्शन ऑफिसर से शिकायत कर सकती है। इसमें स्पीडी ट्रायल होता है। कोर्ट 60 दिनों के भीतर केस खत्म करने की कोशिश करती है।
कैसे होता है मिसयूज - अगर कोई लड़की यह शिकायत करे कि उसे घर में मारापीटा जा रहा है और घर से निकाल दिया है , तो वह कोर्ट से इस कानून के तहत रेजिडंस राइट मांग सकती है। झूठे आरोप लगाकर कोई भी लड़की ससुरालवालों को घर से बाहर निकलवा सकती है। इमोशनल वॉयलंस का आरोप लगा सकती है , जिसका कोई पैमाना नहीं है।
कैसे रुके मिसयूज - यह कानून अमेरिका के कानून की तर्ज पर बनाया गया , लेकिन वहां यह कानून जेंडर न्यूट्रल है। वहां बिना जांच पड़ताल और बिना सबूत के कोई ऐक्शन नहीं लिया जाता। हमारे कानून में इसका जिक्र नहीं कि किस तरह इसकी जांच हो। मिसयूज रोकने के लिए जांच की एक प्रक्रिया बनाई जा सकती है और इसे महिला , पुरुष के लिए समान बनाया जा सकता है।
( सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट महेश तिवारी से बातचीत के आधार पर )
'498A.org' नाम से बने एक ग्रुप को ऑनलाइन मिलीं तीन शिकायतें
पीड़ित -1, नई दिल्ली
मैं एक सरकारी कर्मचारी हूं। शादी के बाद मैं , मेरी पत्नी और मेरे पेरंट्स साथ रहते हैं। दिक्कत तब शुरू हुई जब मेरे भाई का यहां ट्रांसफर हो गया। तब पिता ने हमें एक दूसरा बड़ा कमरा देकर उस कमरे को छोटे भाई को दे दिया। तब मेरी पत्नी घर पर नहीं थी। जैसे ही वह आई तो मेरे पेरंट्स पर चिल्लाने लगी कि उसका कमरा क्यों चेंज कर दिया है। उसने बेहद गलत शब्दों का इस्तेमाल किया और अपने और मेरी मां के गहने , जो उसे पार्टी में पहनने के लिए दिए थे , लेकर अपने मायके चली गई। एक महीना हो चुका है। मैं जब भी उससे बात करता हूं तो वह कहती है , हम अकेले रहेंगे। मैं अपना परिवार नहीं छोड़ना चाहता। शादी के बाद से वह हर रोज अपनी मां से मिलने जाती थी। उनका घर हमारे घर से 5-6 किलोमीटर दूर है। जब कभी मैं उसे वहां जाने को कहता तो वह मुझे खुदकुशी की धमकी देती। अभी वह प्रेग्नंट है और अब उसके घर वाले अफवाह फैला रहे हैं कि हम उसे मारते थे और हमने उसे घर से बाहर फेंक दिया। आप बताइये मैं क्या करूं ? बेहद परेशान हूं।
पीड़ित - 2, मुंबई
शादी के बाद ही मेरी पत्नी ने मुझसे कहा , मैं हैंडसम नहीं हूं और वह मुझसे संतुष्ट नहीं है। उसने कहा कि उसने अपने भाइयों की डर से मेरे साथ शादी की क्योंकि उन्होंने मुझे चुना था , लेकिन यह बात वह अपने घर वालों के सामने नहीं कहती। उसने झूठा इल्जाम लगाकर मुझे 498 में फंसा दिया। मैं एक साल जेल में रहा। मैंने अपर कोर्ट में अप्लाई किया और हमारे बीच समझौता हो गया। अब मैं अपनी पत्नी और उसके पैरंट्स के साथ उनके घर पर रहता हूं। अब फिर वही हाल शुरू हो गया है। वह मुझ पर चिल्लाती है , गाली देती है और मेरी सारी सैलरी ले लेती है। मैं अपने मां - बाप का इकलौता बेटा हूं। वह मेरे साथ नहीं रहना चाहती। उसकी मां और भाई धमकाते हैं कि उसके साथ ही रहूं , नहीं तो वह फिर 498 के तहत शिकायत कर देंगे। मैं कैसे इससे बाहर निकलूं ?
पीड़ित - 3, मेंगलूर
मैं एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करता हूं। कभी - कभी काम के सिलसिले में बाहर जाने पर पत्नी को अपने पेरंट्स के साथ छोड़ता हूं। लेकिन यह उसे अच्छा नहीं लगता। उसे लगता है कि मैं उसकी केयर नहीं करता। मैं अपने परिवार के साथ रहना चाहता हूं , लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं है। एक दिन वह पुलिस स्टेशन गई और शिकायत दर्ज करा दी कि मैं उसे पीटता हूं और मैं और मेरे परिवार वाले उसे दहेज के लिए परेशान करते हैं। हकीकत यह है कि मेरा काफी पैसा बहुत समय तक उसके पिता के पास था जो उन्होंने अपने बेटे की शादी में इस्तेमाल किया। पुलिस हमारे घर आई और हम सब को पुलिस स्टेशन ले गई , लेकिन हमारे कुछ कॉन्टेक्ट थे , इसलिए लंबी बहस के बाद केस रजिस्टर्ड नहीं हुआ। तब उसके पेरंट्स भी मौजूद थे। तब से मैं शर्मिन्दगी महसूस करता हूं। अपनी पत्नी से बात करने का मन नहीं करता , जबकि वह मेरे साथ ही रह रही है।

No comments:

Post a Comment